रविवार, 3 अप्रैल 2011

3-astitva

अस्तित्व के अहसास की आकांक्षा'
फुर्सतो  की fitratoan के फासले,
जानने को ज़िन्दगी की हरकती जुनूनी,
जीने की आरज़ू के रूबरू कुछ ख्वाब,
देखने की हसरतें समंदर का चेहरा,
या की फिर थाह उस आशमां  की,
हम ,खुद मे ही समाये हुए थे,
जो हमारी जुदा आवाज़ का अंदाज़ है,
कैसे खुदाया देख पाते उस जहा को,
ज़हा की बूँद का पैगाम हम खुद ही थे.
---भारती








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