बुधवार, 6 अप्रैल 2011

6-KAVITA

श्वासों के दीप मे
आस का उजाला होने दो,
रोको न कोई मुक्त चक्षु,
आज उन्हें खो लेने दो
भोर का नाजुक अन्धेरा,
ले रहा अंगडाई सूरज,
आने लगी परछाई नभ पर,
जीवन उमग परिहास भर कर,
श्रष्टि की वेदना का समागम,
न हो पाए इस समय,
व्योम को उमंगो की छाव में,
खो लेने दो,जी लेने दो,
आज वेदना हो लेने दो,
चक्षुओ से नदी का बहाव रोको नहीं,
उसको समंदर हो लेने दो,
वादिओ में खो लेंने  दो,
पाने को कुछ अपनी साँसे,
खुद का खुद को हो लेने दो,
समाया हे जो साँसों में तूफा,
भोर की किरणों में हो लेने दो,
श्वासों के दीप में आस का उजाला हो लेने दो.
----भारती









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