मंगलवार, 10 जनवरी 2012

vichaaro kaa makaa

कुछ दिमाग
की मेकनिस्म,
 कुछ शब्दों का खिलवाड़
रख दिए इस तरह से,
 जैसे रखता है एक बच्चा, बड़े सोच समाज के अपने मिटटी के घर की इंटो को
और बना दिया कोई सुन्दर सा संवाद . फिर खुश होना अपने खेलने के अहसास पर ,फिर जीत हुई आज शब्दों की, और एक इमारत खडी हुई विचारों की,
पर शब्दों के पंख कहा जो उड़ कर बैठते . खिड़की पर उन अहसासों की ,जो ता उम्र ना खोज
पाए शब्द अपने लिए,
क्योकि विचारो की उत्तजना ने बंद कर दिया,
 भावो की खिड़की और दरवाजे.फिर विजय हुई मश्तिषक की और दिल धरा का धरा रह गया.
कोई बोला सोचना छोड़
दे और समज्हना
सीख जा, क्योकि दिल के दरवाजे बंद है, आत्मा की चिड़िया उदास है, मगर
तू खुश रहना. विचारों का machanism  तो तेरे पास है. .
बना देना एक  और मका. घर ढूंढ ही लेगा जो आस पास है.

-----भारती





phir wohi baat

फिर अहसास वोही , फिर ख़याल वोही,
कुछ तो
उम्र का ऐतबार है. कुछ तो जुबा का सवाल है,
पर नाजुक से खयालो को किसका इंतज़ार है.
तबियत होती है जुदा इंसान बनते बनते
पर कब निकल जाए हसरतो का परिंदा यह अहसास नहीं,
वक़्त के मानिंद नहीं की हम बदल दे हर पल अपने होने की धुरी को
क्योकि
 कुछ  वो
 भी है जो निकल जाने का ऐतबार नहीं
कैसे पकड़ के रखे वो जो बंद मुट्ठी
 से निकलता है रेत की
 तरह, जहा उसके पहलू
 मे  होने का ऐतबार नहीं.
वो एक अहसास है निकल जाएगा फिजा के साथ,
अभी तो उसकी खुशबू
की नब्ज़ का अहसास नहीं
.ऐ पल ठहरजा कुछ इस तरह ,जो मेरे जीने का भरम तो हो लेने दे मुझे.
 अब तक  था ये जख्म यह भी विश्वास नहीं.

---भारती