शनिवार, 1 दिसंबर 2012

kavita

तूफा के पहले की खामोशी है ये , 
या तूफा के बाद का बयार ,
साहिल की मंशा क्या है 
माझी की रुखसत क्यू है
किनारों की कोई नहीं मंजिल ,
कभी नहीं मिलता सूकू ,
टकराहट से लहरो की 
सूख गये उनके जज़्बात ,
पर दो पल गुरूर उनको भी होने दो 
गुस्सा समेटा है उनने लहरों का ,कि 
लौटफिर के घर खोजती लहरे ,
अपने साथी तक आएँगी 
और सफ़र की अपने ,किस्से कहानी सुनाएंगी 
होगा मिलन बिछुड़े लम्हों का ,
कुछ दुःख, कुछ सुख ,कुछ तडपन का .
मंजिल की कुछ बात  कहेंगी ,
कुछ अपने जज़्बात कहेंगी ,
यू ही कहानी चलती रहेगी ,
किनारों की नदी समंदर बनती रहेगी !

अमृता