बुधवार, 13 अप्रैल 2011

7-Kavita

चलती रहे ये जिंदगी,पिघलती रहे ये जिंदगी,
वक्त की बूंदों सी बरसती,
बदलती,सुलगती,उलज्हती,बिखरती,
आंधियो में दरख्तों सी,
लहकती,दहकती,
विश्वास की नाज़ुक सी कली,
 बहारों की जुबां सी जिंदगी,
चलती रहे ये जिंदगी,पिघलती रहे ये ज़िंदगी!

उसने दिए कुछ ज़ख्म,
जिसने दिये है ख्वाब कुछ,
उसको मसीहा नाम देके,
एक अनकहा अहसास लेके,
चल पड़े अपनी डगर पर,
कभी डगमग,कभी संभलकर,
साँसों मे एक नाम लेकर,
दिल पे नया इल्जाम लेकर,
उस भंवर में डूबने,उतरने,
निकल पड़ी यह ज़िदगी,
चलती रहे यह ज़िंदगी,पिघलती रहे ये ज़िंदगी.!
----भारती