रविवार, 3 अप्रैल 2011

4-kavita

कैसे भूल जाए कि इंसान है हम,
बुद्ध नहीं की समा जाए उस बोध में
कैसे भूल जाये कि इंसान है हम,
राम नहीं कि सीता को न देख पाए उम्र भर,
भूलने नहीं देता आजादी का अहसास हमें
हम कान्हा नहीं कि बांसुरी में समाये,
और श्रष्टि को अपने सुरों से नचाये,
हम तो खुदको ही ढूँढने जा रहे है,
कुछ हसरतों को साधने जा रहे है,
एक इंसान मिल जाए तो आइना समझ लेंगे,
हम तो खुद को ही बांटने जा रहे है.
-----भारती









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