मैँ विरह गीत सुनाऊँ कैसे ,
तू दूर कहीँ जाता ही नहीँ ,
इन यादो की आबादी मेँ,
सन्नाटा आता ही नहीँ।
मैँ विरह गीत सुनाऊँ कैसे ,
तू दूर कहीँ जाता ही नहीँ ।
बिस्तर -तकिये, भाँङे- बर्तन,
सीढी- बैठक, चौखट- ओटक।
गली -मौहल्ले, बाग -बगीचे ,
बालकनी की छत के नीचे,
वो नोच- खोस, वो प्यार -व्यार,
वो जीत -वीत, वो हार- वार।
यूँ ही आता तू बार -बार ,
यूँ ही आता तू बार बार।
मैँ विरह गीत सुनाऊँ कैसे ,
तू दूर कहीँ जाता ही नहीँ ,
इन यादो की आबादी मेँ,
सन्नाटा आता ही नहीँ।
मैँ विरह गीत सुनाऊँ कैसे ,
तू दूर कहीँ जाता ही नहीँ ।।
Amrita
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