गुरुवार, 20 जून 2013

बुतपरस्ती हो गयी बहुत ,
पत्थर को पूजते रहे,
ख्वाब बुनते रहे
,राह चुनते रहे l
वक़्त की तकदीर है
बह गया लम्हा दर लम्हा
 और  हम रेत  की मानिंद
बनते  गए ,ढहते  गएl








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