मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

kavita

युग युग से समर्पित, 
इक िमसाल ,इक हूक, मतलब केउस पार,,
युग को समरिपत ़
िवशवास ़के 
आवाहन का मूक संदेश,
कुछ तो था सुदामा,तेरी मौन व्यथा के उस पार
,कृषन न होता तो सुदामा भी न होता,
चला जाता एक वादा परछाइयों के उस पार,
अच्छी है कहानी़़़ ं------
युग बदला,बदले िवशवास,
बदलने लगा आसमान, आसपास,
वहुत कठिन हैं कृष्ऩ ,आज,
कोई वादा आज कर न पायेगा,
मजबूरी है,वह कृष्ऩ है,यह व्यथा,
तू समझ न पायेगा,
वह नहीं सुन पायेगा ,
आवाजों के दौर में इक मूक पुकार,
सुदामा अपने होने का ,
कब तक मूल्य चुकायेगा।
बह रहा समय का पृभाव।
बह रहा समय का पृभाव।।.





अमृता 

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